Page 38 - Ankur Vol 2
P. 38

मकर संक्रमर् महोत्सि


               मकर संक्राजन्त का उत्सि लर्भर् पूरे भारत में ककसी न ककसी ऱूप में मनाया
               जाता है | जब सूयगदेि धनु रामश से मकर रामश में प्रिेश करते हैं तो उस ददन

               से दक्षक्षर्ायन समाप्त हो कर उत्तरायर् प्रारम्भ होता है अथागत ्  पृ्िी के  उत्तरी

               र्ोलाधग में ददन बिे और रातें िोटी होने लर्ती हैं | यह एक अत्यंत सुंदर
               खर्ोलीय घटना है l िैसे तो सूयग प्रततमाह एक रामश िोि कर दूसरी रामश में
               प्रिेश करते हैं l सूयग के  इस प्रिेश काल को संक्राजन्त काल कहा जाता है, ककन्तु जब सूयग का संक्रमर् धनु

               रामश से मकर रामश में होता है तो यह समय शास्िों में अत्यंत पविि तथा पुण्य का माना र्या है | क्योंकक
               यह समय अज्ञान के  अंधकार से प्रकाश ऱूपी ज्ञान की ओर, असत्य से सत्य की एिं मृत्यु से अमरता

               {जीिन} की ओर जाने का स्फ ू ततगदायक एिं प्रेरर्ा प्रदान करने िाला समय है l सम्पूर्ग भारत में यह पिग
               भरपूर उत्साह एिं उमंर् से मनाया जाता है l लोर् तीथों पर जा कर स्नान करके  पुण्य अजजगत करते हैं l

               इस ददन लोर् मंददरों में जाकर पूजा करते हैं l भारत के  लर्भर् सभी राज्यों में यह पिग ककसी न ककसी
               ऱूप में मनाया जाता है l जैसे उत्तर                                   भारत  में  लोहिी, दक्षक्षर्  में

               पोंर्ल, पजश्चम में उत्तरायर् एिं                                     पूिग में विह l मकर संक्रमर्
                                                                                              ू
               के  पिग पर भारतीय, पविि नददयों                                       एिं  तीथों  में  स्नान  कर
               समाज के  दीन – हीन बंधुओं को                                         अन्न,  धन  िस्िादद  दे  कर

               उन्हें जीिन योग्य बनाते हैं l भारत                                   के  र्ााँिों में आज भी र्ृहस्थ

               प्रात: काल िह्ममुहतग में उठ कर                                       स्नान  करते  हैं  तथा  चरर्
                                ू
               स्पशग कर बुजुर्ों से आशीिागद प्राप्त करते हैं l इस उत्सि पर रात्रि में बिे - बिे सामूदहक यज्ञ भी ककए
               जाते हैं l यज्ञ की सामग्री में ततलों की अगधकता रहती है l यह एक िैज्ञातनक त्य है कक यज्ञ द्िारा बादल

               बनते हैं और िर्षाग होती है l यज्ञ द्िारा ही बादल विसजजगत भी होते हैं l जब यज्ञ- सामग्री में ततलों की
               अगधकता रहेर्ी तो बादल बनेंर्े और िर्षाग भी होर्ी क्योंकक भारत क ृ वर्ष प्रधान देश है l इस समय िर्षाग की

               आिश्यकता होती है l जब यज्ञ- सामग्री में यि (जौ) की मािा अगधक होती है तो बादल विसजजगत होते हैं
               जो प्रायुः फावर्ुन मास में होमलका दहन के  समय देखा जाता है l क्योंकक फसल पक जाने के  कारर् िह

               समय िर्षाग के  मलए उपयुक्त नहीं होता l िास्ति में पिोत्सि यज्ञ संस्क ृ तत के  उत्सि हैं l ‘उत्सि’ शब्द में
               ‘उत ् ’ उपसर्ग के  साथ ‘सि’ पद जुिा है जजसका (सि) एक अथग यज्ञ भी होता है l


                            लोहिी एिं होमलका दहन सामूदहक यज्ञों के  ही स्िऱूप हैं जजन्होंने समय के  प्रिाह के  साथ
               – साथ आधुतनक ऱूप धारर् कर मलए हैं l कई राज्यों में पतंर् उिाने की प्रततयोग्ताओं का आयोजन भी

               ककया जाता है l आसमान उिती हई रंर् – त्रबरंर्ी पतंर्ों से रंर्ीन हो उठता है l
                                             ु
                 िेदों में भी इस पुण्य पिग के  संदभग में कहा र्या है -
                तमसो मा ज्योततर्गमय| असतो मा सद् र्मय |   मृत्योमाग  अमृतं  र्मय | ऊाँ  शाजन्त: शाजन्त: शाजन्त: ll

                                                                   आचायम सुशील शमाम  (िररष्ठ  हहंदी शशक्षक)   30
   33   34   35   36   37   38   39   40   41   42