Page 11 - Ankur Vol 2
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राष्रीय चैंवपयनमशप चल रही थी l अन्य बहत सारे वपस्तौल शूटसग थे िहााँ पर l उन्होंने
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जाकर उसे बधाई दी कक इतना सब क ु ि होने के बाद भी तुम हमारा हौसला बढ़ाने के मलए आए
हो l ककसी को भी नहीं पता था कक िह एक साल से अपने दूसरे हाथ की रेतनंर् कर रहा था l
उसने जिाब ददया, “मैं यहााँ ककसी का हौसला बढ़ाने नहीं आया हाँ, तुम लोर्ों के साथ प्रततस्पधाग
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करने आया हाँ, तुमसे लिने आया हाँ l” मुक़ाबला शुऱू हआ l बाक़ी सब, िहााँ पर जजतने भी लोर्
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प्रततस्पधाग कर रहे थे, िे अपने दाएाँ हाथ से संघर्षग कर रहे थे लेककन िह अपने बाएाँ हाथ से संघर्षग
कर रहा था l और कफर आखख़र में जीता िही जजसके पास एक बचा हआ हाथ था – के रली l िह
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जीत र्या l लेककन िह यहीं नहीं रुका l उसका लक्ष्य स्पष्ट था – उसे अपने इस हाथ को इस
राष्र का ही नहीं, पूरे विश्ि का श्रेष्ठ शूदटंर् हैंि बनाना है l
उसने पूरा फोकस ककया 1940 के ओलंवपक पर l लेककन 1940 के ओलंवपक खेल कैं मसल
हो र्ए, विश्ि युद्ध की िजह से l कफर उसने अपना सारा ध्यान कें दित ककया 1944 के ओलंवपक्स
पर l दुभागग्यिश विश्ि युद्ध के कारर् िह भी कैं मसल हो र्या l उसने उम्मीद न खोकर अपना
सारा ध्यान 1948 के ओलंवपक्स पर लर्ा ददया l 1938 में उसकी उम्र थी 28 िर्षग l 1948 में िह
38 िर्षग का हो चुका था और जो युिा खखलािी आते और चले जाते थे, उनसे प्रततस्पधाग करना
बहत मुजश्कल होता चला जा रहा था l कक ं तु ‘असंभि’ शब्द उसके शब्दकोश में ही नहीं था l िह
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र्या l पूरे संसार के श्रेष्ठ शूटसग आए हए थे और अपने श्रेष्ठ हाथों से प्रततस्पधाग कर रहे थे l
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क ेरली अपने बचे हए बाएाँ हाथ से संघर्षग कर रहा था l लेककन िह तब भी नहीं रुका l 1952 के
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ओलंवपक्स में कफर से उसने प्रततस्पधाग में भार् मलया और इस बार भी िही जीता l उसने ओलंवपक्स
का पूरा इततहास बदलकर रख ददया l
आप ककसी भी हारे हए व्यजक्त के पास चले जाएाँ, उसके पास एक लंबी मलस्ट होर्ी
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बहानों की कक मैं इस िजह से अपनी जज़ंदर्ी में असफल हआ, इस िजह से मैं क ु ि कर नहीं
ु
पाया, यह मेरा दुभागग्य है ,आदद- आदद _ _ _ l
दूसरी तरफ़ विजेताओं की तरफ़ चले जाएाँ, उनके पास मसफ़ग एक िजह होती है – जो िे
करना चाहते हैं, और िे कर जाते हैं l
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संकमलत- जीत ए दलाल (10 -C)
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