Page 16 - Ankur Vol 2
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मााँ



                 शब्द में सबसे िोटी ,

                 पर ददल में सबसे बिी l

                 चोट लर्ती मुझको है ,

                 आाँसू तनकलते उसके  हैं l

                 दुुःख होता मुझको है ,

                 ददग होता उसको है l

                 खुद बर्ैर खाए रह लेती है ,                                   मााँ तुझे प्रर्ाम

                 पर पेट मेरा भर देती है l
                                                                    सार्र क े पानी की तरह है मााँ का प्यार,

                 मेरी र्लती तिपा देती है ,                          आसमान क े तारों क े समान है उसका

                 खुद सारे कष्ट सह लेती है l                         िात्सवय l

                 बुरे कामों से हमें बचाती है ,
                                                                    कोई सीमा नहीं है उसके  स्नेह की,
                 मााँ,मेरी सबसे अच्िी दोस्त
                                                                    अतुवय है उसकी क्षमा शजक्त l
                 और सलाहकार है ll
                                                                    संतान चाहे बिी हो जाए पर,
                                                             th
                                          अब्दुर रहमान – (9  –J)
                                                                    उसकी ममता कभी कम नहीं होती l



                                                                    उसके  हाथ में है,

                                                                    सबसे बिा सुरक्षा किच l
                                                                    क्यों आ र्ए उसकी आाँखों में आाँसू ?

                                                                    क्षमा करें हमें , अर्र कोई भूल हई तो,
                                                                                                    ु
                                                                    अधूरी है दुतनया उसकी हाँसी के  त्रबना l
                                                                    िह ही है मेरा सब से बिा भर्िान l

                                                                    मााँ तुम्हें लाखों-लाखों प्रर्ाम ll


                                                                                                        th
                                                                                               नंदना (9  -I)



                                                                                                           8
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