Page 30 - Ankur Vol 2
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िह चली र्ई|उसने लकड़ियााँ इकट्ठी की|िह मसर पर उठती,लेककन लकड़ियााँ गर्र
जाती|बार-बार ऐसा ही करती लेककन असफल ही रहती|बहत परेशान होकर िह एक जर्ह
ु
बैठ र्ई|सााँप की तरह दहस्स-दहस्स करके रोने लर्ी|उसकी आिाज सुनकर एक सााँप
तनकला|उसे देखते ही िह िर कर और भार्ने लर्ी|
सााँप ने उसे प्यार से बुलाया,साहस बाँधाया और पूिा|सोन गचरैया ने सब क ु ि बता
ददया|
“तुम मत रोओ, मैं तुम्हारी लकड़ियों में मलपट जाऊाँ र्ा|तू बंिल उठाकर ले जाना
और धीरे-से अपने घर में रख देना|मैं िहााँ से भार् आऊाँ र्ा|” सााँप ने तसवली दी|
सोन गचरैया ने ककसी तरह उस पर विश्िास ककया|लकड़ियााँ लाकर धीरे -से उसने घर
में रख ददया| सााँप तुरंत भार् र्या| उसकी भामभयााँ आई और यह सब देखकर पार्ल-सी हो
र्ईं |
चौथी बार उन्होंने एक काला कं बल ददया और कहा –“इसे धुलकर सफे द करके ले आना|”
सोन गचरैया र्ााँि के बाहर एक क ुाँ ए पर चली र्ई|िह बार-बार धुलती ककन्तु क्या कं बल
धुलने से सफ़े द हो सकता था?िह बैठकर जोर-जोर से रोने लर्ी|शाम हो र्ई लेककन िह घर
न लौटी पर ककसी को उसकी परिाह न हई|
ु
भाग -4
उसके सातों भाई विदेश से िापस आ रहे थे| र्ााँि के बाहर ही उन्होंने रोने की
आिाज सुनी|िोटे भाई को संदेह हआ कक उसकी बहन रो रही है|उसने अपने भाइयों से कहा
ु
लेककन सबने अनसुनी कर दी|बिे भाई ने तो िााँटकर कहा कक िह तो घर में आराम से सो
रही होर्ी|िोटे भाई को यकीन न हआ|िह क ुाँ ए की ओर चल पिा|दूसरे भाई घर चले आए|
ु
उन सबकी पजत्नयों ने अपने-अपने पततयों का ख़ूब स्िार्त-सत्कार ककया|पीने के मलए
दही-शरबत घोल लाई|सबने पूिा कक सोन गचरैया कहााँ है ?
“िह तो अपनी सहेमलयों के साथ खेलने र्ई है|आजकल ख़ूब मौज-मस्ती कर रही
है|” उनका जिाब था|
उधर िोटे भाई ने सोन गचरैया को क ुाँ ए के पास रोते देखा|उसने कारर् पूिा|उसने सभी
बातें साफ़-साफ़ बता दी|िोटा भाई घर आया|उसने घर के बाहर ही उसे तिपा ददया था | 22