Page 25 - Ankur Vol 2
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भूत का डर




                      मैं अपने माता-वपता के  साथ मस्कत में रहता हाँ l मेरे दादाजी –दादीजी र्ुजरात के  एक
                                                                       ू
               िोटे से र्ााँि में रहते हैं l हम लोर् हर साल ि ु ट्दटयों में दादाजी के  घर जाते हैं l दादीजी हर बार

               मेरे माता-वपता से क ु ि नज़र,भूत ,कला जादू जैसी बातें करती हैं l मैं इन बातों को सुनकर थोिा
               चौंक जाता हाँ और बचपन से ही इन सब बातों ने मेरे मन में एक दर सा बैठा ददया हैं l मैं जब
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               अपने माता-वपता को भूत के  बारे में बताता हाँ तो िे कहते हैं कक "िह सुनी-सुनाई बातें हैंl दादीजी
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               को बुरा न लर्े इसमलए उनकी बात सुन लेते हैं lबाकी भूत-िूत जैसा क ु ि नहीं होता हैंl”

                      वपिले साल जब हम अपने र्ााँि र्ए थे तब अजीब सी घटना हई l एक ददन मैं  अपने
                                                                                      ु
               ममिों के  साथ खेत में घूमने र्या था l घूमते-घूमते अगधक समय लर् र्या था l लौटते समय

               अाँधेरा िाने लर्ा था l अभी घर बहत दूर थाl रास्ता कच्चा था, कं कि और पत्थर से भरा हआ l
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                                                                                                         ु
               अाँधेरा देखकर मन में घबराहट होने लर्ी कक रास्ते में कोई भूत ममल र्या तो क्या होर्ा ?

               मैं िर के  मारे जवदी -जवदी कदम बढ़ाने लर्ा और मेरे मन में भूत का िर सताने लर्ा l रास्ते

               में क ु ि आिाज़ें सुनाई दी तो लर्ा कक यह आिाज भूत की हैं l िर के  मारे मैं और तेज़ चलने
               लर्ा l तभी मैंने पीिे देखा कक कोई दहलती हई बिी-सी चीज़ बढ़ती चली आ रही थी l अाँधेरा होने
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               के  कारर् िह क्या हैं पता न चल सका l परन्तु क ु ि आकार ददख रहा था l मैं बहत िर र्या
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               क्योंकक उस चीज़ का मसर नहीं ददख रहा था l हाथ और पााँि भी ददख रहे थे l तब दादी जी की
               बात याद आई कक र्ााँि के  बाहर पेि पर एक त्रबना मसर िाला भूत रहता है l बहत से र्ााँि िालों
                                                                                              ु
               ने उस भूत को देखा है l मैं िर के  मारे कााँपने लर्ा और बहत तेज़ चलने लर्ा l हनुमान चालीसा
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               मन में पढ़ने लर्ा l िरते-िरते पीिे देखा तो साया भी तेज़ चलने लर्ी थी l


                                  क ु ि ही देर बाद ,घर ददखाई देने लर्ा l मैं जवदी-से घर के  पास पहाँचा और पीिे मुिकर
                                                                                          ु
               देखा तो िह चीज़ नजदीक आ र्यी थी l घर की बत्ती के  प्रकाश में देखा तो िह और कोई नहीं

               हमारे पिोस िाले जोशी जी अपने मसर पर आटे का ड़िब्बा लेकर आ रहे थे l घने अाँधेरे के  कारर्

               और मसर पर ड़िब्बा होने के  कारर् मसर नहीं ददख रहा था l मैं जवदी से घर के  अंदर र्या और
               कफर अपने माता-वपता को यह बात बताई lयह सुनते ही मेरे माता-वपता ज़ोर-ज़ोर से हाँसने लर्े l

               आज भी यह बात याद करके  मुझे अपने-आप पर बहत हाँसी आती हैl
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                                                                                  ओम नृपेन कानानी (7 -K)

                                                                                                        17
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