Page 28 - Ankur Vol 2
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सोन गचरैया (लोककिा)
भाग १
कथा सोन नदी के ककनारे की है|उत्तर प्रदेश के दक्षक्षर्ी जजले सोनभि की|एक धनी
व्यापारी था|उसका व्यापार दूर-दूर तक फै ला हआ था|एक बार िह एक बिी-सी नाि से
ु
अपना ढेर सारा सामान लेकर बेचने के मलए जा रहा था|अचानक नदी में बाढ़ आ र्ई|उसने
जोर-जोर से गचवलाना शुऱू ककया--- ‘बचाओ-बचाओ’ ककन्तु आसपास कोई न था|भयंकर बाढ़
में उसे कफर बचाता भी कौन? उसकी नाि नदी में िू ब र्ई|बाद में बहत िानबीन की र्ई
ु
ककन्तु अफ़सोस कक उस बेचारे का कहीं अता-पता तक न चला|
उसके सात बेटे थे और एक बेटी|सभी लोर् बहत दुखी हए पर क्या कर सकते थे|धीरे-
ु
ु
धीरे समय बीतता चला र्या|उनका व्यापार अब न रहा|र्रीबी में ददन बीतने लर्े|उन सबकी
शादी हो चुकी थी लेककन उनकी बहन का वििाह होना बाकी था|सभी उसे बहत दुलार करते
ु
|उसे मानते और प्यार से उसे ‘सोन गचरैया’ बुलाते थे|िास्ति में िह बहत सुंदर-सी ,प्यारी-
ु
सी र्ुड़िया थी|उसके बाल बहत सुनहरे थे ,शायद इसीमलए सब उसे सोन गचरैया (गचड़िया)
ु
कहते थे| सोन गचरैया मीठी- मीठी बातें करती| िह पशु-पक्षक्षयों से भी बहत प्यार करती थी|
ु
उसके भाई उसे कभी दुुःख न देते थे|कोई काम न करिाते थे|सोने के पालने में उसे
झुलाना चाहते थे|ककन्तु र्रीबी के कारर् अब िे भी परेशान रहने लर्े|इसमलए एक ददन
सबने ममलकर तनर्गय मलया कक विदेश जाकर धन कमाया जाए|उन्होंने अपनी-अपनी पजत्नयों
को समझा ददया कक सोन गचरैया की देख-रेख करें और उसे ककसी प्रकार की तकलीफ़ न दें|
सभी भाई विदेश चले र्ए|कई महीनों तक तो उनकी पजत्नयों ने उसे क ु ि नहीं कहा|लेककन
धीरे-धीरे िे सोन गचरैया से गचढ़ने लर्ीं| क ु ि ददनों बाद उन्होंने उसे सताना भी शुऱू कर
ददया|उसे तरह-तरह से तकलीफ़ देने लर्ीं --
भाग -2
एक ददन उसकी सभी भामभयों ने ममलकर उसे धान दे ददया ददया और चािल बनाकर
लाने के मलए कहा |उन लोर्ों ने उसकी कोई सहायता न की| न तो कोई ट ू वस ददया न ही
कोई मशीन दी|सोंन गचरैया धान को लेकर सोंन नदी के ककनारे चली र्ई|एक पेि के नीचे
बैठकर यह कहते हए ज़ोर-ज़ोर से रोने लर्ी – ‘सातो भैया र्ए परदेश ,सातो भौजी देिें
ु
तकलीफ़ ‘| 20