Page 17 - Ankur Vol 2
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बाररश एक कदम सफलता की ओर
ति-ति-ति र्जगन करते हैं घन ,
चंचल हो उठते मदहलाओं के मन l
मंजजलें ममल ही जायेंर्ी,
तीव्र र्तत से दौि चलीं, िे हैं िस्ि उठाने ,
एक ददन भटकते–भटकते ही सही|
कफर प्रतीक्षा सूयग की,जजन्हें हैं कपिे सुखाने|
र्ुमराह तो हैं िे,
जो घर से तनकले ही नहीं|
शमागकर चला र्या सूरज बादलों के पीिे ,
िे खुद ही तय करते हैं,
तिपा बैठा है आदमी ितरी के नीचे l
मंजजल आसमानों की,
जजसे बाररश में भीर्ना पसंद नहीं ,
जजनके हौंसले हैं बुलंद |
क्योंकक ज़ुकाम हो जाए, िह चाहता नहीं l
पररंदों को नहीं दी जाती,
पर बाररश खेतों की जान है , उिने की तालीम,
बाररश ककसानों की मुसकान है l खुमशयााँ ममल ही जाएाँर्ी,
बाररश पेि-पौधों की रक्षक है , एक ददन रोते-रोते ही सही|
बाररश ग्रीष्म-ऋतु की भक्षक है l कमजोर ददल के हैं िे,
जो हाँसाने की सोचते ही नहीं|
झूम उठता है मन बच्चों का बाररश में ,
रखते हैं जो हौंसला आसमान ि ू ने का,
तनकल आते िे बाहर,भीर्ने की ख्िादहश मेंl
उनको नहीं परिाह कभी गर्र जाने की|
कजश्तयााँ कार्ज़ की चल पिती हैं पानी में ,
पूरे होंर्े हर िे ख्िाब,
नई िवि पा र्ई िसुंधरा, चुनररया धानी मेंl
जो देखे हैं अाँधेरी रातों में,
नासमझ हैं िे,
आओ ममलकर करें िर्षाग का अमभनंदन ,
जो िर से पूरी रात सोते ही नहीं||
इंिधनुर्षी हो जाए हम सबका तन-मन ll
th
तनककता त्रबजु (9 -I)
th
अस्फीअ शेख (8 -D)
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