Page 18 - Ankur Vol 2
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एक गरीब मााँ                                          प्रकतत
                                                                                        ृ

                 एक मााँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी,

                 मीठे सपनों से अपने मन को मभर्ो रही थी..

                 तभी उसका बच्चा यूाँ ही घूमते हए समीप आया,
                                                ु
                 मााँ के  तन ि ू कर हलके -हलके  से दहलाया....

                 मााँ अलसाई सी चटाई से बस थोिा उठी ही थी,
                 तभी उस नन्हें ने हलिा खाने की जजद कर दी....        प्रक ृ तत  हमारी घोर तनराली


                 मााँ ने उसे पुचकारा और अपनी र्ोद में ले मलया,      जुिी  है इससे  दुतनया हमारी ।
                 कफर पास ही रखे ईटों के  चूवहे का ऱूख ककया....      प्रक ृ तत से  है धरा तनराली ,

                                                                    प्रक ृ तत में  फै ली  हररयाली|
                 कफर उन्होंने चूवहे पर एक िोटी सी कढ़ाई रख दी,

                 और आर् जलाकर क ु ि देर मुन्ने को,
                                                                    िृक्ष प्रक ृ तत के  हैं  श्रृर्ांर ,
                 ताकती रही.....
                                                                    इनको क्यों काट रहा इनसान |
                 कफर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी,
                                                                    नष्ट इसे कर स्ियं  पााँि पर,
                 क्या सुनोर्े तब तक? कोई पररयों िाली कहानी...
                                                                    क ु वहािी क्यो मार रहा है इनसान ?
                 मुन्ने की आाँखे अचानक खुशी से खखल र्ई,             प्रक ृ तत की र्ोद में जन्म मलया है ,

                 जैसे उसको मुाँह मााँर्ी मुराद ही ममल र्ई....       तो इसको क्यों उजािना चाहता है ?

                 मााँ उबलते हए पानी में कविी ही चलाती रही,          स्िाथग साधनों  के  बाद मुहाँ फे र लेना,
                             ु
                 पररयों का कोई ककस्सा मुन्ने को सुनाती रही....      क्या मानि तेरी यही मानिता है ?

                 कफर िो बच्चा उन पररयों में ही जैसे खो र्या,        प्रक ृ तत दािी है, जजसने सिगस्ि ददया,

                 चटाई पर बैठे-बैठे ही लेटा और कफर,                  मानि उसे दासी क्यों समझता है?

                 िहीं सो र्या.....                                  क्या मानि इतना थिािी है कक
                                                                    अपनी मााँ को ही,
                 मााँ ने उसे र्ोद में ले मलया और धीरे से मुस्कराई,
                                                                    दासी बनाना चाहता है?
                 कफर न जाने क्यों उसकी आाँख भर आई....

                 जैसे ददख रहा था िहााँ पर, सब िैसा नहीं था,
                                                                                                        th
                                                                                         तुर्षार दयानी (7 –I)
                 घर में रोटी की खाततर एक पैसा भी नहीं था..

                 राशन के  ड़िब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था,

                 क ु ि बनाने के  मलए घर में कहााँ क ु ि धरा था...?
                                                                                                        10
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