Page 22 - Ankur Vol 2
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लक्ष्य

               लक्ष्य जीिन का एक महत्त्िपूर्ग अंक है । हर एक व्यजक्त का अपना लक्ष्य होता है, जजसमें उसकी

               रुगच होती है। लक्ष्य िोटा हो या बिा, हमें हर एक की पसंद और उसकी खूत्रबयों का सम्मान करना
               चादहए। कहतें हैं कक अर्र व्यजक्त सपना देख सकता है, तो उस सपने को पा सकता है। लक्ष्य

               पाना एक कं कि-पत्थर भरी सिक पर चलने जैसा है। हम सिक पर चलते हैं, यानी लक्ष्य को पाने
               के  मलए तनकलते हैं, कं किों-पत्थरों पर हमारा पैर पिता है यानी कदठनाइयों का सामना करते हैं

               और अंत में हम सिक पार करते हैं यानी लक्ष्य को पा लेते हैं।लर्न, तनष्ठा और सकारात्मकता
               के  भािों से भरे व्यजक्त के  मलए आसमान भी असीममत नहीं है। लक्ष्य के  प्रतत हमारी तनष्ठा और

               मेहनत रंर् लाती है| हमारे जीिन को सफल बनाती है।
                                                                           संकमलत,

                                                                                                  th
                                                                       श्रीदेिी मोहन (8 -H)




                                                   पुथतकों से दोथती








                       हर व्यजक्त के  पास कम-से-कम एक अच्िा दोस्त होना चादहए l सुख-दुुःख में दोस्त हमें

               साथ देते हैं| हमारी खुमशयों में शाममल होते हैं और दुुःख में दहम्मत देते हैं l लेककन दोस्त आज
               हैं तो कल नहीं l ककसी न ककसी कारर् हमेशा के  मलए अलर् हो जाते हैं l एक ऐसा दोस्त जो

               हर कदम पर हमारा साथ देता है, िह है ककताब l ककताबें हमें ऐसी दुतनया में ले जाती हैं जो इस

               दुतनया से अलर् है l उस दुतनया में जाने के  बाद हम अपनी  सारी परेशातनयााँ  भूल जाते हैं l
               एक ही जीिन में हम अनेक जजंदर्ी जी सकते हैं l पुस्तकों से हमें बहत क ु ि सीखने को ममलता
                                                                                    ु
               है l पुस्तकें  हमें ज्ञान प्राजप्त के  मलए  प्रेररत करती हैं l अर्र पुस्तकें  हमारे आस-पास हों तो मन

               को प्रसन्नता ममलती है l अच्िी ककताब पढ़ने के  बाद हमें उस ककताब के  पाि की तरह बनने की
               प्रेरर्ा ममलती है l ककताबें हमारा साथ कभी नहीं िोितीं l पुस्तकें  हमारी सच्ची दोस्त होती हैं l

               पुस्तकों से दोस्ती सबसे अच्िी और सच्ची दोस्ती होती है l


                                                                                                         th
                                                                                    अहदतत (9 -H)

                                                                                                         14
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